एक अश्क़ बहता है कभी....
अब आदत इतनी हो गयी है हसनेकी;
उस दर्द को जैसे भूलसा गया हूँ.....
मुरझाया दिल लेके घूमू इधर-उधर...
मगर शक़्ल जो दी है उपरवालेने....
आज दिल रौंद उठा है,उस अतीत पर,
भूलना चाहता हूँ उस परछाईको मेरी,
जो कभी उभर ना पाई,टूटे ख्वाबोंसे......
पंखुड़ियोंमे साँस,एक ख्वाब पलकोमे...
चले थे हम एक साथ...
उस क्षितीज की ओर,जिसे पानेके बस सपने बुने हैं हमने....
हात और झोली तो अभीभी खाली हैं !!!!